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Thursday, 13 November 2014

जाग जा ओ बावरे

  जाग जा  ओ बावरे अंधेरा कब का निकल चुका ,
कुछ कर दिखा ओ बावरे  यहा तुझे कोई ना मिला,
उठ सवेरा हो चुका सूरज सर पर हैं सवार ,
बस देख ले उस वक़्त को जो चल पड़ा खिड़की के पार ,
फिर  वक़्त कभी ना आएगा तू यूही पछतायेगा ,
 मित्र बिरादर होंगे दूर , आसरा तुझे न मिल पायेगा।

मतलबी  हैं दुनिया सारी ,  कोई ना तेरा अपना हैं ,
जाग जा  ओ बावरे तुझे ही कुछ करना हैं ,
पैसे वालो की हैं दुनिया सारी , कुचला तू ही जायेगा,
 सब कुछ तेरा छीन के तू यु ही फिरता जायेगा,
अभी भी देर न हुई कुछ करने की बारी हैं,
दुनिया को  दिखलादे तू , के तुझसे ही दुनिया सारी  हैं।

बहुत जी लिए घुट-घुट के , अब करने की बारी हैं,
 मत पड़ इस दुनिया के पीछे , ये सब अत्याचारी ,
 माँ-बाप जब   तक साथ हैं तब तक तेरा हैं वजहूद ,
तब तक करले नाम रोशन तू , फिर तेरी ना होगी पूछ ,
भाई भी अब दूर हुआ , भें भी तेरी हुई पराई ,
दोस्त भी तेरे मुह फेरे अब , सबसे हुई तेरी लड़ाई।



जाग जा  ओ बावरे अंधेरा कब का निकल चुका ,
कुछ कर दिखा ओ बावरे  यहा तुझे कोई ना मिला,


जाग जा  ओ बावरे





 

Saturday, 8 November 2014

दृष्टिकोड में बदलाव चाहिए




आज के इस महायुग में जहां हम आधुनिकरण  के ऊपर चर्चा करते हैं वही हम ये भूल जाते कि आधुनिकरण का अर्थ हैं बदलाव, बदलाव अपनी सोच में। एक उद्धारण के  साथ मैं आपको समझाता हूँ।  कुछ लोग   यह समझते हैं कि अगर हमारा पहनावा आधुनिक दुनिया के  हिसाब से तो हम मोर्डर्न हैं। जबकि उनकी सोच वही तक सीमित होती हैं ,  ऐसे लोगो को मॉडर्न कहना पाप के सामान हैं।  मॉडर्न  मतलब आप दुनिया को किस दृष्टीकोंड से देखते हैं उन समस्याओ का हल किस प्रकार निकालते हैं, न के उनसे भागना की  करना। वो सारे दकियानूसी विचार जो आपको आगे बढ़ने से रोकते हैं उनके खिलाफ आवाज़ उठाना।

तो कभी भी इस गलतफैमी में मत रहना के अगर कोई मॉडर्न कपडे  पहनता हैं तो वो  मॉडर्न  हैं  उसकी सोच ही उसका अस्तित्व दर्शाती हैं ।